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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई  (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।

अथवा
बंगाल की परम्परागत कढ़ाई पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर -

(i) बंगाल की कांथा कढ़ाई
(Kantha Embroidery of Benga)

कांथा ” ( Kantha) बंगाल की पारम्परिक कढ़ाई कला है। कांथा से तात्पर्य है "पेबंद लगा वस्त्र” (Patched Cloth)। कांथा मुख्यतः बंगाल की स्त्रियों के द्वारा निर्मित किया जाता है। इसमें फटे-पुराने वस्त्रों, जैसे—साड़ी, धोती, चादर, टेबल क्लॉथ, पेटीकोट इत्यादि को कई तहों में व्यवस्थित करके एक नया रूप दिया जाता है। ये फटे-पुराने वस्त्र अक्सर जिन्हें फेंक दिया जाता है, वहाँ की महिलायें अत्यन्त परिश्रम करके एक नया वस्त्र बनाती हैं जिसे ओढ़ने, बिछाने, थैले बनाने, सजावट करने आदि में उपयोग में लेती हैं। यह उनकी मितव्ययी होने का ज्वलंत उदाहरण है।

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बंगाल की कांथा कढ़ाई

कांथा बनाने के लिए फटे-पुराने वस्त्रों की तह जमाकर टंकाई के टाँके (Running Stitch) द्वारा चारों ओर से बोर्डर बनाया जाता है, फिर बीच के भाग में कमल, हाथी, मछली, चन्द्रमा, सूरज, शंख आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। पौराणिक गाथाओं पर आधारित चित्रों को भी वे बड़ी कुशलतापूर्वक वस्त्र पर अंकित कर देती हैं कांथा में सभी टाँके एक समान एवं समान दूरी पर लिये जाते हैं। टाँके अत्यन्त सूक्ष्म, बारीक एवं महीन लिये जाते हैं। जिससे पुराने वस्त्रों के बने होने के बावजूद भी ये वस्त्र कला के सुन्दर नमूने बन जाते हैं। अवकाश के क्षणों में बंगाली स्त्रियाँ इन्हें बनाती हैं। बेकार वस्तुओं से उपयोगी वस्तुएँ (Waste to Best Material) बनाती हैं। इसमें सिलाई के लिए धागे भी अधिकतर वे पुरानी साड़ी के बोर्डर से निकालती हैं नमूने को रंग-बिरंगे धागों से भरा जाता है।

शैलजा डी० नायक ने अपनी पुस्तक Traditional Embroidery of India में लिखा है, “It is a treasured art of every door where in the Bengali ladies irrespective of their castes, classes and socio-economic groups are expertised, the Embroidery not only depricts the stitches employed but it also expresses the outflow of their creative, resourceful, imaginary and patient craftman. "

कांथा पटना, हुगली, फरीदपुर, खुलना, पूर्वी तथा पश्चिमी बंगाल में बनाये जाते हैं। कांथा का उपयोग चारपाई तथा चौकी (Hard Bed) पर बिछाने हेतु बिस्तर के लिए किया जाता है। आसन आदि के उपयोग में भी काम आते हैं।

कांथा कढ़ाई में टाँकों में साटिन, कच्चा टाँका ( Running Stitch) तथा लूप टाँके (Loop Stitch) का अधिक उपयोग किया जाता है। स्टेम टाँके (Stem Stitch) से नमूने के सूक्ष्म रूप बनाये जाते हैं। नमूने का बाह्य रेखाचित्र बनाने में उल्टी बखिया (Back Stitch) का उपयोग किया जाता है।

कांथा कढ़ाई में सभी टाँके एक समान दूरी पर होते हैं जो वस्त्र के दोनों तरफ से एक समान दिखते हैं। अतः वस्त्र का उल्टा एवं सीधा पक्ष पहचानना अत्यन्त कठिन हो जाता है। कई बार “एप्लीक वर्क' (Applique Work) अथवा पैच वर्क (Patch Work) से भी वस्त्र को सुसज्जित किया जाता है। सफेद पृष्ठभूमि पर बोर्डर बनाने के लिए विभिन्न रंगों के वस्त्रों, जैसे-लाल, पीला, हरा, नीला, काला, जामुनी को विभिन्न प्रकार के नमूने में काटकर बोर्डर पर हेम स्टिच (Hem Stitch) द्वारा सिलाई कर दिया जाता है। रंग संयोजन, टाँकों की समानता, सूक्ष्मता एवं बारीकी तथा नमूनों के सुन्दर सामंजस्य से कांथा वस्त्र अत्यन्त सौन्दर्यमय एवं आकर्षक लगता है।

कांथा के प्रकार
(Types of Kantha)

कांथा मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं। प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार से है-

1. लैप कांथा (Lap Kantha) - यह एक चौकोर क्वील्ट किया हुआ (Quilted Cloth) वस्त्र होता है। इसके किनारों को एवं समस्त वस्त्र को साधारण कच्चे टाँके (Simple Running Stitch) अथवा डार्निंग टाँके (Darning Stitch) से सिल दिया जाता है। इसका उपयोग मुख्यत; सर्दी के दिनों में ओढ़ने एवं बिछाने में किया जाता है।

2. ओर कांथा (Oar Kantha) – ओर कांथा तकिये का गिलाफ होता है। यह आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 2 फीट एवं चौड़ाई डेढ़ फीट होती है। इसमें सम्पूर्ण वस्त्र पर नमूने बने होते हैं। फूल-पत्तियों, पेड़-पौधे, पक्षियों आदि के चित्र को बड़ी कुशलतापूर्वक वस्त्र पर उतारा जाता है। वस्त्र के बोर्डर में पशु-पक्षी के चित्र, कोनों पर फूल-पत्ते के चित्र बने होते हैं तथा मध्य के भाग में कमल के फूल का चित्रण किया जाता है और कांथा (Oar Kantha) देखने में अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक लगता है।

3. दुर्जनी (Durjani) – इसे " थैलिया” (Thalia) भी कहते हैं। यह एक "वर्ग" (Square) के आकार का वस्त्र होता है। इसके बोर्डर में फूल-पत्तियों के नमूने एवं मध्य में कमल के फूल के नमूने बने होते हैं। कुछ दुर्जनी में पशु-पक्षी का भी चित्र देखने को मिलता है। इस चौकोर वस्त्र के तीनों कोणों को पकड़कर मध्य में लाकर सिल दिया जाता है। जिससे यह एक लिफाफे (Envelop) की तरह दिखाई देता है। किनारों के खुले भागों से लटकाने के लिए डोरी (Strip) बना दी जाती है जिससे इसे ऊपर लटकाकर टांगा जा सकता है। नमूने को सामान्यतया कच्चे टांके (Running Stitch) से कुशलता एवं दक्षतापूर्वक काढ़ा जाता है।

4. सुजनी (Sujani ) — बंगाल का "सुजनी" काफी लोकप्रिय एवं प्रचलित कांथा है। यह एक चादर की तरह होता है जिसकी लम्बाई 6 फीट एवं चौड़ाई तीन से साढ़े तीन फीट रखी जाती है। यह चादर विशेष अवसरों पर, जैसे- दशहरा, दीपावली, होली, तीज-त्योहार, शादी-विवाह, जन्मदिन, पार्टी आदि के अवसर पर बिछायी जाती है। इस आयताकार चादर पर अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक नमूने बनाये जाते हैं। नमूने से पूर्व इस आयताकार चादर को 9 बराबर भागों में बाँटा जाता है। तत्पश्चात् इन पर बोर्डर बनाये जाते हैं। मध्य के रिक्त भाग में कमल के सुन्दर फूलों का चित्रण किया जाता है। प्रत्येक आयताकार हिस्सों में पशु-पक्षियों, फलों-फूलों, लताओं आदि के नमूने को अंकित किया जाता है। इसके अतिरिक्त पौराणिक गाथाओं पर आधृत चित्र, नृत्य करती बालायें, गुड़िया, अश्व पर सवार आदमी, फल खाती चिड़िया, फूलों का रस चूसती तितलियों का भी बड़ा कुशलतापूर्वक चित्रण किया जाता है। इन्हें साधारण कच्चे टाँकों से काढ़ा जाता है। साधारण टाँकों से क यह कांथा अत्यन्त सुन्दर एवं मनमोहक लगता है।

5. आरसीलता (Arshilata)— यह कांथा आइना (Mirror) कंघी (Comb) ए अन्य श्रृंगार की सामग्रियों को कवर करने के लिए बनायी जाती हैं। यह पतला टुकड़ा होता है जिसकी चौड़ाई सामान्यतया 8 इंच तथा लम्बाई 12 इंच होती है। इसके चारों ओर सुन्दर एवं आकर्षक नमूनों से बोर्डर बने होते हैं। वस्त्र के मध्य में कृष्ण लीला अथवा रास मंडल के सुन्दर एवं उत्कृष्ट नमूने बने होते हैं। कमल, लताएँ, पेड़-पौधें, फूल-पत्तियों आदि के नमूने भी बने होते हैं।

6. बेटन ( Bayton ) – यह भी एक छोटा चौकोर टुकड़ा होता है। यह कई उपयोगी पुस्तकें, बहुमूल्य सामग्रियों आदि को लपेटकर रखने में काम आता है। इसकी लम्बाई एवं चौड़ाई 3 फीट होती है। वस्त्र के मध्य में “शतदल कमल" सौ दलों वाला (Hundred Petals) कमल के फूलों का नमूना बना होता है। इसे "शतदल पादम्” (Satdala Padma फूल-पत्तियों (Foliages), पक्षियों (Birds), रथ (Chariot ), हाथी, घोड़े आदि के भी नमूने बने होते हैं, कई बेटन ( Bayton) कांथा पर "भगवान गणेश" एवं "विद्या की देव सरस्वती" की प्रतिमा का भी चित्रण किया जाता है। पुस्तक लपटेने के लिए जिस बेट कांथा का उपयोग किया जाता है, उस पर मुख्यतः देवी सरस्वती के नमूने बने होते हैं।

7. रूमाल (Rumal) - रूमाल कांथा भी अत्यन्त लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध कांथा है। यह एक वर्गाकार एक फुट का टुकड़ा होता है। इसके बोर्डर में फूल-पत्तियों के नमूने तथा मध्य में कमल के फूल के नमूने बने होते हैं। बंगाल के कांथा का चादर, बेड कवर, तौलियाँ, दीवार पर टाँगने वाले सजावट के सामान की प्रसिद्धि दूर-दूर के देशों में है। नमूना साधारण कच्चे टाँके (Simple Running Stitch) से बनाया जाता है। परन्तु चैन टाँके, उल्टी बखिय (Back Stitch), साटिक (Satin Stitch) तथा हेरिंग बोन टाँके का भी उपयोग नमूने बनाने में किया जाता है।

कांथा का प्रचलन आजकल भी है। आज भी बंगाल के ग्रामीण इलाकों में कांथा क निर्माण किया जाता है। अवकाश के क्षणों में बंगाल की स्त्रियाँ इसे बनाती हैं। इस कला क व्यवसायीकरण करने के लिए बंगाल में कई केन्द्र खोले गये हैं।

(ii) कश्मीर की कशीदाकारी
(Embroidery of Kashmir)

कश्मीर भी कढ़ाई किए हुए वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध था। पश्मीना शाल के अतिरिक्त कश्मीर की कढ़ी हुई साड़ियाँ, कढ़े हुए नमदा तथा कढ़ाई किए हुए सिल्क और अन्य वस्त्र भी प्रसिद्ध थे। कश्मीर की कढ़ाई को 'कशीदा' कहा जाता था और इसमें साधारण टांके जैसे- साटिन, उल्टी बखिया, फंदे वाले टांके, साधारण टंकाई के टांके, हेरिंगबेन तथा चेन टांके प्रयोग किए जाते थे। कश्मीर में कढ़ाई का काम प्रायः पुरुष और युवा लड़के करते थे एक अनुभवी पुरुष मास्टर के समान टांके का नाम बोलता था और लड़के शीघ्रता से उसे बना हालते थे। कश्मीर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर घाटी है। कशीदा काढ़ने वाले प्राकृतिक सौंदर्य को ही वस्त्र में सजीव कर देते थे। नमूनों का उनके पास अभाव नहीं था। प्राकृतिक चित्रण में वे इतने पटु हो जाते थे कि प्रकृति से भी आगे बढ़ जाते थे। 'कशीदा' कढ़ाई के वस्त्र दोनों ओर सीधे रहते थे।

कढ़ाई में रंग-बिरंगे ऊनी और रेशमी धागों का प्रयोग किया जाता था। इनके नमूनों में फूल-फलों के गुच्छे, चिनार की पत्तियाँ, रंग-बिरंगी चिड़ियाँ आदि के नमूनों का बाहुल्य रहता था। कश्मीरी वस्त्रों के सौंदर्य का कारण इनकी सुन्दर रंग-योजना रहती थी। चटक रंगों को भी इतने सुन्दर ढंग से लगाया जाता था कि समस्त कढ़ाई का प्रभाव नेत्रों को सुखद लगता था। समस्त कढ़ाई में रुखापन कहीं देखने को नहीं मिलता था, बल्कि वे स्निग्धता से भरपूर दिखाई देते थे। प्रत्येक टाँके की सूक्ष्मता और स्पष्ट बाह्य रेखाओं को देखकर मानव की उंगलियों की प्रवीणता पर अचम्भित हुए बिना नहीं रहा जाता है। शाल तथा स्कार्फो पर रफूगरी की कढ़ाई भी की जाती थी। आजकल भी कश्मीर में कढ़ाई के द्वारा अनेक वस्त्र बनाए जाते हैं, परन्तु अब उनमें वह सौन्दर्य नहीं है, जो पहले रहता था। कश्मीर के हल्के एवं पतले पश्मीना - शाल नमूनों के सूक्ष्मतम चित्रण के लिए प्रसिद्ध थे। कश्मीर का नमदा गलीचे के समान काम आने वाला मोटा, ऊनी, फेल्ट किया हुआ वस्त्र था। इतने मोटे वस्त्र पर भी कश्मीरी कसीदाकार सुन्दर नमूनों पर अति सुन्दर कढ़ाई करते थे। इनमें ऊनी धागों काही प्रयोग किया जाता था, जो चटक रंग के होते थे। इनमें चिनार की पत्तियों के नमूनों के साथ सुन्दर रंग की सुकोमल टहनियाँ और फूल-फल तथा पक्षियों आदि के भी नमूने रहते थे। इनके नमूने बड़े-बड़े तथा समस्त वस्त्र को घेर लेने वाले होते थे। नमदा की कढ़ाई में केवल मात्र चेन - स्टिच का प्रयोग होता था। कढ़ाई के द्वारा आजकल भी पश्मीना, शाल, नमदा, टीकोजी, कोट- कार्डिगन आदि बनते हैं और ये अत्यन्त लोकप्रिय भी हैं। आजकल कश्मीर की कशीदाकारी की कला का पुनरुद्धार किया जा रहा है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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